Saturday, August 23, 2014

क्यों शुरू हुई गोवर्धन परिक्रमा? ति‍ल-ति‍ल घटता पहाड़ ....


सोजन्य  :  danik bhaskar.com


आस्‍था की मि‍साल है ति‍ल-ति‍ल घटता ये पहाड़, लोग लोट-लोट करते हैं परि‍क्रमा

इंफोग्राफिक के माध्‍यम से जानि‍ए गोवर्धन परि‍क्रमा का रास्‍ता। 
 
मथुरा. गोवर्धन पर्वत का धार्मिक महत्‍व है। हिंदू धर्म में मान्‍यता है कि इसकी परिक्रमा करने से मांगी गई सभी मुरादें पूरी हो जाती हैं। यह आस्‍था का अनोखा मि‍साल है। इसीलि‍ए ति‍ल-ति‍ल घटते इस पहाड़ की लोग लोट-लोट कर परि‍क्रमा पूरी करते हैं। हर दिन सैकड़ों श्रद्धालु अपनी मनोकामनाओं को लेकर यहां आते हैं और 21 कि‍लोमीटर के फेरे लगाते  हैं। श्रद्धाभाव का आलम यह है कि‍ सालोंभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है। लोग सर्दी, गर्मी और बरसात की परवाह कि‍ए बि‍ना ही 365 दि‍न यहां श्रद्धा-सुमन अर्पि‍त करते हैं।
 
कहा जाता है कि‍ पांच हजार साल पहले गोवर्धन पर्वत 30 हजार मीटर ऊंचा हुआ करता था। अब इसकी ऊंचाई करीब 30 मीटर ही रह गई है। पुलस्त्य ऋषि के शाप के कारण यह धीरे-धीरे घट रहा है। इसकी परि‍क्रमा के रास्‍ते में 21 पूजनीय स्‍थल हैं। सभी का अपना इति‍हास है। यहां का माहौल देखकर ही लोग भक्‍ति ‍भावना में डूब जाते हैं। यही कारण है कि‍ तीर्थयात्रि‍यों को इस सफर का पता ही नहीं चलता और अलौकि‍क आनंद की प्राप्‍ति‍ भी हो जाती है।    
क्यों शुरू हुई गोवर्धन परिक्रमा
 
एक बार श्रीकृष्ण गाय चराकर नंदभवन लौटे तो मां यशोदा ने उन्‍हें बताया कि देवराज इंद्र की पूजा की तैयारी हो रही है। इंद्र वर्षा करते हैं जिससे अन्न की पैदावार होती है और उनसे गायों को चारा मिलता है। इस पर श्रीकृष्‍ण ने मां को सुझाव दिया कि हम सभी को गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए क्‍योंकि इसी पर्वत पर गाएं चरती हैं। 
 
उन्‍होंने कहा कि इंद्र तो कभी दर्शन नहीं देते हैं। इस बात से क्रोधित होकर इंद्र ने भयंकर बारिश कर दी। जब घंटों बारिश नहीं रुकी तो श्रीकृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर ब्रज को बारिश और बाढ़ से बचाया। इसके बाद इंद्र का अभिमान शांत हुआ। इस घटना के बाद श्रीकृष्‍ण ने ब्रजवासियों के साथ पर्वत की परिक्रमा की थी। यहीं से गोवर्धन पर्वत की परिक्रमा का चलन शरू हो गया। 
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तस्‍वीर में: गोवर्धन परि‍क्रमा के लि‍ए श्रद्धाभाव का आलम यह है कि‍ कुछ श्रद्धालु लेटकर इसे पूरा करते हैं।
 
21 कि‍लोमीटर की पैदल परिक्रमा करने में करीब 12 घंटे का वक्‍त लगता है, जबकि वाहन से तीन-चार घंटे में परिक्रमा पूरी हो जाती है। लोग लेटकर भी परिक्रमा करते हैं। यह बेहद कठिन होता है। लेटकर परिक्रमा पूरी करने में सात दिन का वक्‍त लगता है। यदि‍ आपने गोवर्धन परिक्रमा नहीं की है, तो कोई बात नहीं, हम आपको बताते हैं वहां की खास बात .
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साक्षी गोपाल जी कान वाले बाबा मंदिर:

यहां आने वाले लोग गोवर्धन पर्वत पर बने गिरिराज मंदिर में पूजा करते हैं। इसके बाद परिक्रमा के लिए चल देते हैं। गोवर्धन पर्वत से यात्रा शुरू करने के बाद पहला मंदिर यही आता है। यहां पर साक्षी गोपालजी की मूर्ति है। लोग यहां पर भगवान को नमन कर आगे बढ़ते हैं।
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श्रीराधा-गोविंद मंदिर:

इस मंदिर का निर्माण भगवान श्रीकृष्‍ण के पोते वज्रनाभी ने करवाया था। यह मंदिर प्राचीन काल का बताया जाता है। यहां पर एक भव्‍य गोविंद कुंड भी है। पौराणिक कथाओं के नुसार गिरिराज गोवर्धन की पूजा से इंद्र ने कुपित होकर ऐसी भीषण वर्षा की, जिससे ब्रज डूबने लगा और तब बालकृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठाकर डूबते ब्रज को बचाया था। 
पराजित होकर इंद्र श्रीकृष्‍ण की शरण में आए और कामधेनु के दूध से उनका अभिषेक किया। गौ के बिन्‍दू अर्थात गौ दुग्‍ध से वह स्‍थल एक कुंड के रूप में बदल गया जो कि गोविंद कुंड के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यहां आज भी गौ खुर, बंशी आदि चिन्‍हों से अंकित गिरिशिलाएं हैं।
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राजस्‍थान की सीमा प्रारंभ:
 
गोवर्धन पर्वत की लंबाई करीब 10 किलोमीटर से ज्‍यादा है। इसका आधा हिस्‍सा यूपी में आता है तो दूसरा हिस्‍सा राजस्‍थान में। दुर्गा माता मंदिर से आगे राजस्‍थान की सीमा शुरू हो जाती है। इस मंदिर की देवी को बॉर्डर वाली माता भी कहा जाता है। परिक्रमा मार्ग पर यहां एक विशाल गेट बना हुआ है।
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पूंछरी का लौठा स्थित मंदिर और छतरी:
 
परिक्रमा मार्ग पर पूंछरी लौठा नामक जगह पर बेहद पुराना भवन है, इसे छतरी कहते है। साधू गोविंद दास ने बताया कि यहां पर संत, साधू रहकर श्रीकृष्‍ण और गोवर्धन पर्वत का भजन करते हैं। यहां साधुओं का आना-जाना लगा रहता है। इसी जगह के पास एक मंदिर भी है।
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हरजी कुंड:
 
परिक्रमा मार्ग पर हरजी कुंड है। इस कुंड के संचालन समिति के ध्‍यक्ष विश्‍वनाथ चौधरी ने बताया कि हरजी श्रीकृष्‍ण के सखा थे। वह कृष्‍ण के साथ गाय चराने जाया करते थे। यहां पर दोनों की लीलाएं हुई थी। इसी वजह से इस कुंड का बहुत महत्‍व है। वर्तमान में इस कुंड का पानी गंदा और मटमैला हो गया है। यहां के निवासी उमेश सिंह कहते हैं कि कुंड का रखरखाव ठीक से नहीं किया जा रहा है।

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रूद्र कुंड:

यहां पर विशाल रूद्र कुंड है जहां श्रीकृष्‍ण की लीला हो चुकी है। बाद में यहां पर वैध कब्‍जा हो गया था। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश पर अवैध कब्‍जा हटा दिया गया। अब इस कुंड का निर्माण फिर से हो रहा है।

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राधाकृष्‍ण मंदिर और कलाधारी आश्रम:
 
यहां राधाकृष्‍ण का मंदिर है। इस मंदिर में परंपरा के तहत आश्रम संत सेवा काफी सालों से चल रहा है। करीब 70 साल पहले इसकी स्‍थापना हुई थी। हर दिन यहां पर 40 से 50 संत आते-जाते रहते हैं। यहां पर सौ गाएं पाली गई हैं। संत राघवदास कहते हैं कि हमेशा से यह आश्रम संतों की सेवा में लगा है।
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ठाकुर जी बिहारीजी महाराज मंदिर: 
 
इस मंदिर के महंत सुखदेव दास हरी वंशी वाले ने बताया कि मंदिर बेहद पुराना है और इसके स्‍थापना काल के बारे में कुछ पता नहीं है। इसे मैथिल ब्राह्मण समाज के लोग चलाते हैं।


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श्री लक्ष्‍मी वेंकटेश मंदिर, गऊघाट:
 
इस मंदिर की स्‍थापना वर्ष 1963 में दक्षिण भारतीय परंपरा से हुई थी। यह मानसी गंगा के बीच में स्थित है। स्‍वामी राम प्रपन्‍नाचार्य ने बताया कि पूजा की परंपरा दक्षिण भारतीय है।
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चूतड़ टेका मंदिर:
 
यह बेहद पुराना मंदिर है, जिसे ब नया रूप दे दिया गया है। इसमें हनुमान, राम, लक्ष्‍मण, सीता और राधा-कृष्‍ण की प्रतिमाएं हैं। पंडित केशवदेव शर्मा ने बताया कि जब श्रीराम को लंका जाने के समय समुद्र पर पुल की आवश्‍यकता हुई तो पत्‍थर मंगवाए गए। उस वक्‍त हनुमान जी द्रोणगिरी पर्वत के पास गए। तब द्रोणगिरी ने अपने बेटे गिरिराज (गोवर्धन पर्वत) को इस कार्य के लिए भेजा। 
 
हनुमान जी गोवर्धन को लेकर समुद्र किनारे जा रहे थे, तभी आदेश हुआ कि अब पत्‍थरों की जरूरत नहीं है। इस बीच हनुमान जी ने गोवर्धन पर्वत को यहीं पर रख दिया। वे यहां बैठे भी थे। इसलिए इस जगह का नाम चूतड़ टेका हो गया। दूसरी कथा के अनुसार भयंकर बारिश के दौरान ब्रज को बचाने के लिए श्रीकृष्‍ण ने गोवर्धन पर्वत को उठा लिया था। इसके बाद श्रीकृष्‍ण ने लोगों के साथ पर्वत की परिक्रमा की थी। इस दौरान श्रीकृष्‍ण यहीं पर बैठे थे। तब से इस जगह को चूतड़ टेका भी कहते हैं।

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यहां पर हनुमान का पंचमुखी रूप है।
 
मंदिर के साथ-साथ यहां पर आश्रम भी बना हुआ है और खंड रामायण पाठ चलती रहती है। मान्‍यतानुसार, यह मंदिर 25 वर्ष पहले बनाया गया था।
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केदारनाथ धाम माता वैष्‍णो देवी मंदिर:
 
इस मंदिर का निर्माण केदारनाथ नामक व्‍यक्ति ने करवाया है। केदारनाथ ने बताया कि 50 साल पहले गौसेवा और धर्मार्थ के लिए मंदिर की स्‍थापना की गई थी।
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राधाकृष्‍ण मंदिर:
 
इस मंदिर को कुछ दशक पहले आम लोगों ने बनवाया है। यहां पर राधाकृष्‍ण की प्रतिमा है।

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उद्धव कुंड:
 
जब श्रीकृष्‍ण मथुरा से द्वारिका चले गए थे, तब उन्‍होंने उद्धव को मथुरा में गोपियों का हाल जानने के लिए भेजा था। बताया जाता है कि यहां पर उद्धव जी महाराज कुंड में विराजमान हैं।

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विट्ठल नामदेव धाम:

परिक्रमा मार्ग पर विट्ठल नामदेव मंदिर है। भक्‍त यहां पर आकर भगवान को नमन करते हैं और फिर आगे बढ़ते हैं।

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राधा कुंड:
 
इस कुंड को राधा ने पने कंगन से खोदकर बनाया था। मान्‍यता है कि राधाकुंड और श्‍याम कुंड में नहाने से गौ हत्‍या का पाप खत्‍म हो जाता है। यहां के पुजारियों ने बताया कि जब श्रीकृष्‍ण की हत्‍या करने की कंस की सारी योजना विफल होती जा रही थी, तब असुर अरिष्‍ठासुर को भेजा गया। उस वक्‍त वे गायों को चराने के लिए गोवर्धन पर्वत पर गए हुए थे। 
 
यहां पहुंचने के बाद अरिष्‍ठासुर ने बैल का रूप धारण किया और गायों के साथ चलने लगा। इसी दौरान श्रीकृष्‍ण ने अरिष्‍ठासुर को पहचान लिया और उसका वध कर दिया। इसके बाद वह राधा के पास गए और उन्‍हें छू लिया। इस बात से राधारानी बेहद नाराज हुईं। उन्‍होंने कहा कि गौ हत्‍या करने के बाद छूकर मुझे भी पाप का भागीदार बना दिया। इस घटना के बाद राधारानी ने कंगन से खोदकर कुंड की स्‍थापना की। उन्‍होंने मानसी गंगा से पानी लेकर इसे भरा। इसके बाद सभी तीर्थों को कुंड में आने की अनुमति हुई। यहां राधारानी और उनकी सहेलियों ने स्‍नान कर गौ हत्‍या का पाप धोया।
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श्‍याम कुंड:
 
श्रीकृष्‍ण ने गौ हत्‍या का पाप खत्‍म करने के लिए छड़ी से कुंड बनाया। उन्‍होंने सभी तीर्थ को उसमें विराजमान किया और इसमें स्‍नान भी किया। पुरोहित राम नारायण ने बताया कि कार्तिक महीने की कृष्‍णाष्‍टमी के दिन यहां नहाने का लग महत्‍व है।
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कुसुम सरोवर:
 
यहां पर कुसुम वन है। श्रीकृष्‍ण द्वारा राधा जी की वेणी गूंथी जाने के स्‍थल के रूप में यह प्रसिद्ध है। यह सरोवर प्राचीन है। पहले यह कच्‍चा कुंड था। इसे आरछा नरेश राजा बीर सिंह जू देव ने वर्ष 1819 में पक्‍का करवाया था। इसके बाद वर्ष 1723 में भरतपुर के महाराजा सूरजमल ने इसे कलात्‍मक स्‍वरूप प्रदान किया। उनके पुत्र महाराजा जवाहर सिंह ने वर्ष 1767 में यहां पर कई छतरियों का निर्माण करवाया था।

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श्‍याम कुटी:
 
यह स्‍थल प्राचीन काल का है। यहां पर श्रीकृष्‍ण ने लीलाएं की थी। वर्तमान में यहां का नजारा उजड़ा-सा लगता है। ब श्रीदौलतराम रयात चैरीटेबल ट्रस्‍ट यहां पर वृक्षारोपण और सौंदर्यीकरण का काम करवा रहा है।

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मानसी गंगा मंदिर:
 
इस मंदिर में मानसी गंगा की प्रतिमा है और श्रीकृष्‍ण के स्‍वरूपों की भी पूजा होती है। मान्‍यता है कि जब गोवर्धन पर्वत काभिषेक हो रहा था, उस वक्‍त गंगा के लिए पानी की आवश्‍यकता हुई। तब सभी चिंता में पड़ गए कि इतना गंगाजल कैसे लाया जाए। इस दौरान भगवान ने अपने मन से गंगा को गोवर्धन पर्वत पर उतार दिया। इसके बाद से ही इसे मानसी गंगा कहते हैं। पहले यह छह किलोमीटर लंबी गंगा हुआ करती थी लेकिन अब यह सिमट कर कुछ ही दूर में रह गई है
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मंदिर गिरिराज जी:
 
यहां पर गिरिराज (गोवर्धन पर्वत) का मंदिर है। इसमें निरंतर पूजा चलती रहती है। मंदिर के ंदर एक विशाल कुंड बना हुआ है जिसमें गोवर्धन पर्वत का स्‍वरूप रखा हुआ है।

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परिक्रमा समाप्‍त:
 
इस स्‍थान पर आकर भक्‍तों की परिक्रमा समाप्‍त होती है। यहां पर एक विशाल गेट बना हुआ है। परिक्रमा पूरी कर लोग खुद को धन्‍य मानते हैं। 
 
ऐसे स्‍थापित हुआ गोवर्धन पर्वत
 
सतयुग में रावण से युद्ध करने के लिए श्रीराम को लंका जाना था। इसके लिए समुद्र में पुल बनाने का फैसला हुआ। ऐसे में हनुमानजी और न्‍य वानरों को पत्‍थर लाने का आदेश दिया गया। उनके आदेश पर हनुमानजी द्रोणगिरी पर्वत के पास गए। उन्‍होंने हनुमान से अपने वृद्धावस्‍था के बारे में बताया और शर्त रखकर कहा कि‍ श्रीराम की कार्य सेवा में उनके दो पुत्र गिरिराज (गोवर्धन पर्वत) और रत्‍नागिरी पर्वत को ले जाएं। शर्त में उन्‍होंने हनुमानजी से कहा कि‍ वे श्रीराम से मि‍लना चाहते हैं। इसलि‍ए बेटों को ले जाने के बाद श्रीराम से उन्‍हें मिलवाया जाए। 
 
हनुमान गिरिराज को लेकर समुद्र किनारे जाने के लिए निकल पड़े, तभी आदेश आया कि पत्‍थरों की आवश्‍यकता पूरी हो गई है। जिसके पास जो पत्‍थर है, वहीं पर उसे त्‍याग दें। इसके बाद हनुमानजी ने ब्रज में गोवर्धन पर्वत को स्‍थापित कर दिया। ऐसा किए जाने पर गोवर्धन ने हनुमान से कहा कि यह तो वादाखिलाफी है। तब श्रीराम के निर्देशानुसार हनुमान ने कहा कि द्वापर युग में श्रीकृष्‍ण के रूप में आकर श्रीराम उनसे मिलेंगे।

सोजन्य  :  danik bhaskar.com

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http://www.bhaskar.com/article-hf/UP-govardhan-parikrama-guide-janmashtami-latest-news-hindi-4719898-PHO.html




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